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मंगलवार, 23 मई 2017

मैने जो लिखा था….

यूँ तो लिखने की शुरुआत कविता से ही की थी । पर लगता है कि कविता लिखी नहीं जाती बल्कि अपने आप को लिखाती है । जब भाव ह्रुदय मे नहीं समाते तो पन्नों पे बिखर जाते हैं । अब ऐसा कोई भाव नहीं जिसके अतिरेक को मैं रोक न पाँऊ, तभी मैं अब कविता नहीं लिख पाता शायद । मैनें अपनी सारी कवितायें या ग़ज़लें भावातिरेक मे लिखीं, अब चाहे वह हर्ष रहा हो या शोक । बहुत दिनों तक मैने उन्हें बाँटा भी नहीं । अब जब समय की धूल ने वो यादें धुँधला दी हैं तो साहस हुआ है कि मैं किसी के सामने रख सकूँ………….मैने जो लिखा था …।

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हम नहीं वक्त जो चुपचाप गुज़र जायेंगे,
जब तेरी राह से निकलेंगे, ठहर जायेंगे ।
कभी तो पास कोई आके मुझसे दो बात करे,
ग़र जो तन्हा रहे तो यूँ ही बिखर जायेंगे ।
आँधियों न बुझाओ उसकी यादों के चराग़,
हम इतने स्याह अँधेरों मे किधर जायेंगे।
दर्द जो ढल के अश्क़ मे न गिरे आँखो से,
बनेंगे हर्फ़ औ काग़ज़ पे उतर जायेंगे ।
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शनिवार, 7 जून 2014

बस अब और नही....!!!

साल बदलते है....तारीखे बदलती है..                              
घड़ी की सुइयों की तरह,
कुछ भी ठहरता नही है.....
हर साल की तरह दिवाली आती है होली आती है,
न दीयों की रौशनी ही ठहरती है...
न ही होली का कोई रंग ही चढ़ता है...मेरी जिन्दगी में...

हर बार ख्वाब टूटते है उम्मीदे टूटती है....
हर बार सम्हलता हूँ और.....
फिर टूट कर बिखरता हूँ मैं....
हर बार ढूंढ़ कर लाता हूँ खुद को,
और हर बार भीड़ में खो जाता हूँ...
खुद के ही सवालो में उलझ कर रह जाता हूँ ......

सफ़र पर चल
ता हूँ सबके साथ,
सभी मुझसे आगे निकल जाते है,
और मैं न जाने किसके
इन्तजार में पीछे रह जा
ता हूँ......

डायरी के खाली पन्नो की तरह,
मैं भी खाली हो चुकी हूँ....
न शब्द ही मिलते है मुझे,
न ही अर्थ समझ पाती हूँ.....अपने इस खालीपन का...

थक चुकी हूँ....
इन शब्दों से खुद को बहलाते-बहलाते,
थक चुकी हूँ....
खुद को समझाते-समझाते,
बस अब और नही....

बस अब और नही......
ठहर जाना चाहता हूँ.....
बिखर जाना चाहता हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहता हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह.... 
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहता हूँ......!

कुछ देर और ठहरो साथ मेरे...!!!

कुछ देर और ठहरो साथ मेरे...              
अरसे बाद कुछ लिख रहा हूँ मैं....!

कुछ दूर और चलो साथ मेरे,
सदियों से मंजिलो की तलाश में...
भटक रहा हूँ मैं....!

कुछ पल और थाम लो हाथ मेरा,
कि फिर एक बार गिर कर..
सम्हाल रहा हूँ मैं.......!

कुछ और ख्वाब देख लो तुम साथ मेरे,
कि अरसे से एक ख्वाब के लिए जाग रहा हूँ मैं.....!

कुछ दूर और समेट लो मेरे वजूद को,
कि फिर प्यार में.....
टूट कर बिखर रहा हूँ मैं...!!!

शनिवार, 24 नवंबर 2012

दिल को इंतजार है हमेशा बस उनके आने का


















दिल में उनकी यादो की एक झलक सी रहती है,
इन हवाओ में हरपल उनकी महक सी रहती है,
दिल को इंतजार है हमेशा बस उनके आने का,
हमे उनसे मिलने की अब एक कसक सी रहती है|

ऐसा होता नहीं की आपकी हमे याद न आये,
बात सिर्फ इतनी है की हम कभी जता न पाए,
प्यार तुम्हारा हमारे लिए अनमोल है सनम,
मौका दिया नहीं तुमने और हम दिखा न पाए| !

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

आ जाओ लौट कर तुम




















तुम बिन क्या है जीना
क्या है जीना
तुम बिन क्या है जीना

तुम बिन जिया जाए कैसे
कैसे जिया जाए तुम बिन
सदियों से लम्बी हैं रातें
सदियों से लम्बे हुए दिन
आ जाओ लौट कर तुम
ये दिल कह रहा है

फिर शाम-ए-तन्हाई जागी
फिर याद तुम आ रहे हो
फिर जां निकलने लगी है
फिर मुझको तड़पा रहे हो
इस दिल में यादों के मेले हैं
तुम बिन बहुत हम अकेले हैं
आ जाओ...

क्या-क्या न सोचा था मैंने
क्या-क्या न सपने सजाए
क्या-क्या न चाहा था दिल ने
क्या-क्या न अरमां जगाए
इस दिल से तूफ़ां गुजरते हैं
तुम बिन तो जीते न मरते हैं
आ जाओ...

शनिवार, 3 नवंबर 2012

यादें भी कितनी अजीब होती हैं ना?
जिन पलों में हम हंसे थेउन्हें याद करके हम हंसते हैं और
जिनके साथ में हम हंसे थेउन्हें याद करके रोते हैं।


 

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